Saturday 9 January 2016

कुछ अलफ़ाज़ हमारी ज़ुबानी !!

बैठे हुए उस अधूरी किताब के पन्नों को देख मुस्कुराते हुए
खयालों को शब्दों में पिरोने की कोशिश तोह यूँही जारी है।

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कुछ तो खिला है सभी को इस ज़िन्दगी से
ना चेहरे पे है मुस्कुराहट ना आँखों मे है कशिश
निकल पड़े हैं आज बी हर रोज़ की तरह
सवेरे की ताज़गी मे सभ कामों से है रंजिश।

कुछ तो खिला है सभी को इस ज़िन्दगी से
ना शाम होने का है जूनून , ना चाहत है रात की
यूं लौट चले एक मेहनत भरे दिन के बाद
मनन फिर बी डगमगाया हुआ लेके जो काम है बाकी।


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कुछ अजब  सी तपिश उन निगाहों में  थी ,
सर्दियों की कशिश वहा हवाओं में  थी ,
उस पार  जुलस रही आग को सिर्फ गूर  ही सका ,
रंजिशें  दुवाओं में थी मगर कुछ बोल ना सका।

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हौसला तो भरा पड़ा था पर मन था मुर्जया हुआ ,
आंसू ना रुक रहे थे फिर बी कदम ना डगमगाए ज़रा,
तकलीफो के समुन्दर से चोट यू खा रहा ,
यह नक्श ये बेचैन दिल फिर बी उसी के गुण गा रहा !!!!!

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उन गुज़रते पलो को याद तो कर
कुछ होसला कोशिश और इल्तेजा तो कर
क्या रखा है यूँही जान दे जाने में
मोहब्बत के जुनून पे ऐतबार तोह कर।

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अल्फ़ाज़ों के इस बवंडर में खो चले आज हम
जुनून -ए -इश्क़ भी बिखरने को मजबूर हो गया










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